11- हाल ही में साइंस एडवांसेज जनरल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय ग्लेशियर के पिघलने की दर 21वीं सदी की शुरुआत से दोगुनी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1975 से हिमालयी ग्लेशियर की बर्फ का एक चौथाई हिस्सा पिघल चुका है। यह तथ्य 1970 के दशक में शीत युद्ध के दौर में आमिर की सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों और आधुनिक सेटेलाइट से मिले डाटा के अध्ययन से जुटाए गए हैं। इसमें हिमालय क्षेत्र के लगभग 650 ग्लेशियर्स में आए बदलाव का अध्ययन किया गया है, इस अध्ययन के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर से हर साल 8 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है और इसकी भरपाई नहीं हो पा रही, इसका सबसे बड़ा कारण मानवीय गतिविधियां हैं; जिसके चलते और औसत तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। यह बढ़ता तापमान ग्लेशियर्स के पिघलने के दर में इजाफा कर रहा है।
इसके कई घातक परिणाम भारत, पाकिस्तान, चीन जैसे देशों पर पढ़ सकते हैं। जिनके जल संसाधन का बड़ा हिस्सा हिमालय की चोटियों से निकलने वाली बड़ी नदियों पर निर्भर है। भविष्य में दक्षिण एशिया में हिमालय के निचले हिस्से में रहने वाले लगभग 1 बिलियन लोग पानी की अनियमित आपूर्ति से प्रभावित होंगे। यह रिपोर्ट कहती है कि यदि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कठोर कदम उठाए जाते हैं तो भी इस सदी के आखिरी तक हिंदू कुश- हिमालय रेंज की एक-तिहाई बर्फ पिघल जाएगी। कठोर उपायों को अपनाए जाने की स्थिति में दो-तिहाई के पिघल जाने का अनुमान है।
12- हालहिं में WHO ने E- 2020 initiative:2019 प्रोग्रेस रिपोर्ट जारी कर दी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दुनिया के 7 देशों में मलेरिया की कोई भी मामला सामने नहीं आया है। इन देशों में चार देश एशिया के हैं। एशिया के ये चार देश चीन, ईरान, मलेशिया और तिमोर-लेस्ते हैं। वहीं एक मध्य अमेरिकी देश एल साल्वाडोर, एक दक्षिण अमेरिकी देश पराग्वे, एक उत्तरी अफ्रीकी देश अल्जीरिया है। इनमें चीन और एल साल्वाडोर ऐसे देश हैं जहां लगातार दो साल मलेरिया के मामले सामने नहीं आए है।
दरअसल 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने E- 2020 initiative लांच किया था। जिसमें 21 देशों को शामिल किया गया था। इन देशों को 2020 तक मलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य था। गौरतलब है कि यह 7 देशों ने 21 देशों में से हैं। मलेरिया प्लाज्मोडियम जैसे परजीवी के कारण होता है।जिनका वहन मादा एनोफेलीज मच्छर करते हैं। इसमें प्लाज्मोडियम फेल्सीफेरम और प्लाज्मोडियम वाइवेक्स ज्यादा महत्वपूर्ण है।
13- हाल ही में बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि ना मिलाई डिफरेंस वेजिटेशन इंडेक्स उष्णकटिबंधीय वनों में हाथियों के लिए मौजूद भोजन का सही अनुमान नहीं लगाता। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस NDVI का हाथियों के द्वारा भोजन के रूप में खाए जाने वाले ग्रामीनॉइडस के साथ नकारात्मक सहसंबंध है। नॉर्मलाइज डिफरेंट वेजिटेशन इंडेक्स यानी NDVI का मापन सेटेलाइट डाटा के आधार पर किया जाता है। यह हाथी जैसे शाकाहारी जीवो के लिए भोजन की उपलब्धता का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दक्षिण भारत में निलगिरी और पूर्वी घाट में यह शोध किया जा गया है। इस शोध में आर्द्र पर्णपाती, शुष्क पर्णपाती और टीक वनों को शामिल किया गया है। इस शोध में पाई गई भोजन की उपलब्धता NDVI के अनुसार नहीं थी। गौरतलब है कि NDVI एक सामान्य संकेतक है यह बताता है कि कितनी भूमि वनस्पति से ढकी है। यह इंडेक्स किसी ऑब्जेक्ट के द्वारा परावर्तित रेड और near-infrared लाइट के बीच के अंतर की गणना करता है। स्वस्थ वनस्पति लाल प्रकाश का शोषण कर लेती है और near-infrared प्रकाश को परावर्तित करती है। यह अंतर स्वस्थ वनस्पति की उपलब्धता को बताता है। शोध में पता चला है कि जिन इलाकों में घास की उपलब्धता कम थी वहां का NDVI भी ज्यादा था इसका कारण कैनोपी कवर ज्यादा होना और झाड़ियों की अधिकता को बताया गया है।
14- केरल विश्वविद्यालय ने आरोग्य पाचा पौधे के जीनोम को डिकोड कर लिया है। आरोग्य पाचा पौधा औषधिये रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। इसका इस्तेमाल कणी जनजाति के लोग पारंपरिक तौर पर करते हैं थकान मिटाने के लिए। शोध के अनुसार या पौधा एंटी ऑक्साइड, एंटीमाइक्रोबियल्स, एंटी इन्फ्लेमेट्री, एंटीट्यूमर, एंटीअल्सर और एंटी डायबिटिक गुणों से युक्त है। ऐसा माना जा रहा है कि इस पौधे की जिनोम को डिकोड किए जाने से इसके गुणों पर शोध को बढ़ाया जा सकेगा। आरोग्य पाचा अगस्त्य हिल्स का स्थानीय पौधा है या पश्चिमी घाट के दक्षिणी हिस्से में 1000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। इन पौधों की मौजूदगी नदियों की छोटी धाराओं के पास है। इस पौधे के फल प्रारंभिक अवस्था में खाने योग्य होते हैं। आयुर्वेद में इस पौधे को 18 उच्च कोटि की औषधियों में से एक माना गया है। 1995 में टॉपिकल बौटैनिकल गार्डन एंड विजिटर्स इंस्टीट्यूट (TBGRI) ने कणी जनजाति के पारंपरिक ज्ञान की मदद से आरोग्य पांचा पौधे से जीवनी नाम की दवा बनाई थी। यह दवा थकान, तनाव, प्रतिरोधक क्षमता और लीवर के बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
15- हाल ही में ओडिशा सरकार ने बाढ़ आपदा एटलस जारी किया है। इसे क्लास में 2001 से 2018 तक के दौरान सेटेलाइट से ली गई चित्रों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें राज्य को बाढ़ से प्रभावी तरीके से निपटाने में मदद मिलेगी। इसके लिए इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) मैं उड़ीसा के बाढ़ प्रभावित जोंस का अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक 2001 से 2018 के दौरान उड़ीसा का 8.96% हिस्सा बाढ़ प्रभावित था। यह लगभग 13.9 600000 हेक्टेयर क्षेत्र है। इसमें से 2.81 लाख हेक्टेयर भूमि हाई से वैरी हाई फ्लड हजार्ड केटेगरी में आती है। ओडिशा में हर साल यहां की बड़ी नदियों मसलन महानदी, ब्राह्मणी, बैंतरनी, स्वर्णरेखा और रूशिकुल्या नदियों में बाढ़ आती है। एटलस में बाढ़ नियंत्रण के उपाय अपनाने और राहत एवं बचाव कार्यो के संचालन में मदद मिलेगी। साथ ही जरूरत वाली जगहों पर राहत और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना भी की जा सकेगी। इस एटलस की मदद से बाढ़ वाले मैदानों में विकास गतिविधियों पर भी नियंत्रण हो सकेगा।
16- हाल ही में अमेरिका ने स्टेट डिपार्टमेंट्स 2018 रिपोर्ट इंटरनेशनल फ्रीडम जारी किया है। अमेरिका यह रिपोर्ट हर साल जारी करता है। इस रिपोर्ट में दुनिया के सभी देशों के लिए चैप्टर निर्धारित है। भारत के लिए दिए गए चैप्टर मैं भारत के मॉब लिंचिंग और देशों में अल्पसंख्यकों से जुड़े कानूनों और सरकारी नीतियों पर विस्तृत चर्चा की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए कदमों ने देश में मुस्लिम जनसंख्या और उनके संस्था को प्रभावित किया है। भारतीय शहरों के नाम बदलने के मुद्दे को रिपोर्ट में शामिल किया गया है। इस कवायद को भारतीय इतिहास में मुसलमानों के योगदान को कम करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि किसी दूसरे देश को भारत में लोकतंत्र और कानून के शासन पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।
17- इंस्टीट्यूट आफ लाइफ साइंसेज ने चिकनगुनिया वायरल इनफेक्शन के लिए एंटीबॉडी का विकास किया है। इस एंटीबॉडी के वाणिज्यिकरण के लिए भी इंस्टीट्यूट आफ लाइफ साइंसेज को लाइसेंस मिल गया है। इस एंटीबॉडी का विकास सोमा चट्टोपाध्याय की अगुवाई वाली टीम ने किया है।अब ILS इस एंटीबॉडी को वाणिज्यिकरण के लिए बायो टेक्नोलॉजी कंपनी से साझेदारी करेगा ILS इससे पहले चिकनगुनियाा वायरल इन्फेक्शन के लिए एंटीबॉडी के विकास की बात सामनेे नहीं आई है। इस तरह ILS की टीम चिकनगुनिया वायरल इंफेक्शन के लिए एंटीबॉडी का विकास करने वाला पहला समूह है। इस एंटीबॉडी को चिकनगुनिया वायरल इंफेक्शन के लिए nsP1, nsP3 और nsP4 प्रोटीन के लिए संवेदनशील और पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी के तौर पर बांटा गया है। चिकनगुनिया वायरस से फैलने वाली बीमारी है। यह संख्या में मच्छरों सेे मानव में फैलती है। इसके लिए जिम्मेदार मच्छर एडीज एजेप्टी और एडीज एल्बोपिक्ट हैंं।






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